मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ? (Maulik Adhikar Kise Kahate Hain)

क्या आप जानना चाहते है कि मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ? (Maulik Adhikar Kise Kahate Hain)

यदि हाँ तो आज इस पोस्ट में आपको मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) के बारें में विस्तार से जानने को मिलने वाला है |

मैंने कई सारी किताबों में मौलिक अधिकार के बारे में पढ़ा | उसके बाद मैंने इस पोस्ट को लिखना तय किया ताकि मैं मौलिक अधिकार के बारे में सभी लोगो को विस्तार से बता सकु |

यह पोस्ट मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) को समझने में आपकी मदद करने वाली है और परीक्षा में पूछे जाने वाले लगभग सभी प्रश्नों के सही उत्तर जानने में आपकी सहायता करेगी |

Maulik Adhikar Kise Kahate Hain

Table of Contents

मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ? (Maulik Adhikar Kise Kahate Hain)

भारत के संविधान के द्वारा नागरिकों को दिये गए वे अधिकार जो मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक हो उन्हें मौलिक अधिकार कहते है |

जिस प्रकार मानव के जीवन के लिए पानी आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्य के पूर्व विकास के लिए मौलिक अधिकार आवश्यक है |

भारत के संविधान के भाग (अध्याय) 3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है | इसलिए भारत के संविधान के भाग (अध्याय) 3 को भारत का अधिकार पत्र (मग्ना कार्टा) कहा जाता है |

मौलिक अधिकार नागरिकों के वे अधिकार है जो सामान्य परिस्थिति में किसी भी सरकार द्वारा सीमित नहीं किए जा सकते है | राज्य सरकार व संघ सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकता जिससे मौलिक अधिकारों को आघात पँहुचे |

मौलिक अधिकारों के मामले में राज्य सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है | सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा मौलिक अधिकार की सुरक्षा की जाती है | भारतीय संसंद संविधान में संशोधन कर सकती है | संसद संविधान में संशोधन करते हुए मौलिक अधिकारों को सीमित कर सकती है |

संविधान संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी तरीके से मौलिक अधिकार मे संशोधन अथवा फेरबदल नहीं किया जा सकता है | किसी भी हालत में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है |

मौलिक अधिकार की परिभाषा

भारत के संविधान में मौलिक अधिकार की कोई परिभाषा वर्णित नहीं है | फिर भी कुल विद्वानो ने मौलिक अधिकार को निम्ननानुसार परिभाषित किया है –

  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार- ‘‘यदि मुझसे कोई प्रश्न पूछे कि संविधान का वह कौन सा अनुच्छेद है जिसके बिना संविधान शुन्यप्राय हो जायेगा तो इस अनुच्छेद 32 को छोड़कर मैं किसी और अनुच्छेद की ओर संकेत नहीं कर सकता यह संविधान की हृदय एवं आत्मा है।”
  • श्री ए.एन.पालकीपाल के अनुसार- ‘‘मौलिक अधिकार राज्य के निरंकुश स्वरूप से साधारण नागरिकों की रक्षा करने वाला कवच है।’
  • न्यायाधीश के. सुब्बाराव के अनुसार- ‘‘परम्परागत प्राकृतिक अधिकारों का दूसरा नाम मौलिक अधिकार है।’’
  • मक्कन के अनुसार- अधिकार सामाजिक कल्याण की कुछ लाभदायक परिस्थितियाँ हैं।
  • हैराल्ड जे. लास्की के अनुसार अधिकारों को सामाजिक जीवन की उन परिस्थितियों की संज्ञा दी है जिसके आभाव में व्यक्ति का पूर्ण विकास सम्भव नहीं।
  • हाॅब हाउस के अनुसार- अधिकार व कर्तव्य सामाजिक जीवन की दषाएँ हैं।

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मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं (मौलिक अधिकारों का वर्गिकरण)

भारत के मूल संविधान में कुल 7 मौलिक अधिकार थे | संपति के अधिकार को वर्ष 1978 में संविधान के भाग 3 से हटा लिया गया था | यह 44 वां संविधान संशोधन के तहत हटाया गया था |

मौलिक अधिकारों का वर्गिकरण– वर्तमान में कुल 6 मौलिक अधिकार ही है | जो कि निम्न लिखित है –

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  5. संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

1. समानता का अधिकार

समानता का अधिकार संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14 से 18 में वर्णित है | इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है |

समानता के अधिकार को समता के अधिकार के नाम से भी जाना जाता है | समानता का अधिकार व समता का अधिकार दोनों एक ही है |

अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समानता का वर्णन किया गया है | इसके अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से वंचित नहीं किया जावेगा। अर्थात कानून की दृष्टि से सब नागरिक समान है।

अनुच्छेद 15 सामाजिक समानता को दर्शाता है | जिसके अनुसार राज्य धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों में विभेद नहीं कर सकता है |

अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता के संबंध में है | जिसके अनुसार राज्य की नौकरियों के लिए किसी भी पद के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त होंगे।

अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत के बारे में है | जिसके अनुसार अस्पृश्यता का आचरण करना कानून रूप से अपराध एवं कानूनी रूप से दण्डनीय होगा।

अनुच्छेद 18 उपाधियों के अंत के बारे में वर्णित है | जिसके अनुसार सेना एवं शिक्षा से संबन्धित उपाधियों को छोड़कर राज्य अन्य को उपाधियाँ प्रदान नहीं कर सकता।

2. स्वतंत्रता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 19 से 22 में अंतर्गत निहित है |

अनुच्छेक 19 के अनुसार वाक-स्‍वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण किया जाना वर्णित है । जिसके अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की आजदी है | नागरिकों को शांतिपूर्वक सम्मेलन करने की आजादी है | संगठन, संघ बनाने की आजादी, भारत के किसी भी स्थान पर घूमने की आजादी, भारत के किसी भी राज्य में निवास करने की आजादी, जीविका चलाने के लिए कोई भी व्यापार, व्यवसाय व कारोबार करने की आजादी दी गयी है |

अनुच्छेद 20 के अनुसार भारत के नागरिक को अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण दिया गया है । इसके अनुसार व्यक्ति किसी अपराध के लिए जब तक दोषी साबित नहीं हो जाता तब तक उसे दोषी नहीं ठहराया नहीं जा सकता | एक अपराध से लिए दोषी को एक बार ही दण्ड दिया जा सकता है |

अनुच्छेद 21 में प्राण और दैहिक स्‍वतंत्रता का संरक्षण दिया गया है | अनुच्छेद 21 क के अनुसार 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के को शिक्षा

अनुच्छेद 22 में कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण दिया गया है | जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने लिए गिरफ्तार करने का कारण बनाता आवश्यक है | बिना किसी कारण के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है | गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अगले 24 घण्टों में मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है |

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार

शोषण के विरुद्ध अधिकार संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 23 से 24 में वर्णित किया गया है |

अनुच्छेद 23 में मानव और दुर्व्‍यापार और बालश्रम का प्रतिषेधका वर्णित है | जिसके अनुसार मानव तस्करी, बल पूर्वक श्रम प्रतिषेध किया गया है |

अनुच्छेद 24 में कारखानों आदि में 14 वर्ष तक बालकों के नियोजन पर रोक लगाई गई है | जिसके अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी कारखाने में काम नहीं करवाया जा सकता है |

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 25 से 28 में वर्णित है |

अनुच्छेद 25 में प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने, धर्म का प्रचार प्रसार करने की स्वतंत्रता है |

अनुच्छेद 26 के अनुसार नागरिकों को धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता दी गयी है | कोई भी व्यक्ति धार्मिक समुदाय की संस्थानों की स्थापना कर सकता है | ऐसे संस्थानो की संपति का प्रबंधन कर सकता है |

अनुच्छेद 27 में नागरिकों को किसी धर्म संप्रदाय को बढ़ाने में लगी गयी राशि पर कर देने के लिए बाध्य नहीं होगा |

अनुच्छेद 28 में कुछ शिक्षण संस्‍थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में पूर्व रूप से स्‍वतंत्रता होती है।

5. संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार

संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 29 से 30 में वर्णित है |

अनुच्छेद 29 में अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों के हितों का संरक्षण दिया गया है | जिसके अनुसार किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी संस्‍कृति सुरक्षित रखने, भाषा या लिपि बचाए रखने का पूर्व अधिकार होगा |

अनुच्छेद 30 में अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों के नागरिकों को शिक्षा संस्‍थाओं की स्‍थापना करने और प्रशासन करने का पूर्व अधिकार रहेगा |

अनुच्छेद 31 संपति के अधिकार से संबन्धित है | लेकिन संपति के अधिकार को 44 वें संविधान संशोधन में नागरिकों के मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया था |

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 32 से अनुच्छेद 35 में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का वर्णन किया गया है | डॉ भीम राव अंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों का अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा’ की संज्ञा दी गयी थी।

इस अधिकार के अनुसार कोई भी नागरिक मौलिक अधिकारों के हनन होने की स्थिति में उच्चतम न्यायालय में जा सकता है |

संवैधानिक उपचारों का अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान है –

  • बन्दी प्रत्यक्षीकरण- किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के पश्चात 24 घंटे के भीतर उसे न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना होगा | यदि उस व्यक्ति को गलत तरीके से अथवा ग़ैरकानूनी ढंग से गिरफ्तार किया गया हो तो न्यायालय व्यक्ति को तुरंत छोड़ने के आदेश दे सकता है |
  • परमादेश- इसके अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद पर तैनात रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा हो और मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहे हो तो परमादेश जारी कर सकता है |
  • निषेधाज्ञा– निचली अदालत द्वारा दिये गए निर्णय पर ऊपरी अदालत रोक लगा सकती है |
  • अधिकार पृच्छा–  इसके अनुसार किसी भी कर्मचारी के पद पर तैनात होने पर उसके पद की संवेधानिक जांच हो सकती है और न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा आदेश’ जारी कर व्यक्ति को उस पद पर कार्य करने से रोक सकता है।
  • उत्प्रेषण- यदि किसी मामले में निचली अदालत द्वारा निर्णय दे दिया गया हो और वह मामला ऊपरी अदालत में विचारधीन हो तो कोर्ट निचली अदालत के आदेश या निर्णय को रकने के लिए उत्प्रेषण कर सकती है |

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मौलिक अधिकार की आवश्यकता

जिन देशों के संविधान में मौलिक अधिकार नहीं होते है वहाँ की सरकार तानाशाही हो सकती है | एक व्यक्ति के नैतिक, सम्पूर्ण विकास के लिए मौलिक अधिकारों की जरूरत होती है |

नागरिकों के भौतिक एवं नैतिक विकास में कोई बाधा नहीं बने, इसके लिए भारत के संविधान में संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से मौलिक अधिकार सम्मिलित किए गए है |

मौलिक अधिकारों का उद्देश्य

सरकार या राज्य द्वारा मनमानी करने व शोषण करने वाली नीतियों के विरोध में नागरिकों को रक्षा प्रदान करना मौलिक अधिकारों का मुख्य उद्देश्य है |

इसके अलावा मौलिक अधिकारों का उद्देश्य नागरिकों के सर्वांगीण विकास हेतु उन्हे स्वतंत्रता देना भी है |

मौलिक अधिकार का महत्व

मौलिक अधिकारों ने निम्नलिखित महत्व है –

  • ये सामाजिक समानता स्थापित करते है |
  • सरकार द्वारा शोषित करने वाली नीतियाँ बनाने पर अंकुश लगाते है |
  • लोकतंत्रता की आधारशिला है |
  • नागरिकों के व्यक्तिगत विकास की अनुकूल परिस्थितियाँ बनाए रखते है |
  • व्यक्ति एवं समुदाय के शोषण पर रोक लगाते है |

मौलिक अधिकार से संबन्धित प्रश्न व उत्तर

मौलिक अधिकार किसे कहते है और कितने है?

भारत के संविधान के द्वारा नागरिकों को दिये गए वे अधिकार जो मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक हो उन्हें मौलिक अधिकार कहते है | वर्तमान में कुल 6 मौलिक अधिकार है |

भारत के 6 मौलिक अधिकार कौन कौन से है?

1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

मौलिक अधिकारों का वर्गिकरण बताइये?

1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारो का वर्णन किजिए |

1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

मौलिक अधिकार को मौलिक क्यों कहा जाता है?

संविधान में प्र्दत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मौलिक इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अधिकार मनुष्य के सर्वांगीण विकास से अतिआवश्यक होते है |

मौलिक अधिकार कितने है ?

मौलिक अधिकार छ: है | जो कि निम्नलिखित है –
1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति व शिक्षा संबन्धित अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

अंतिम दो लाइन

आज आपने इस पोस्ट में मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ? (Maulik Adhikar Kise Kahate Hain) के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की है |

इसके अलावा मौलिक अधिकार के प्रकार, मौलिक अधिकार कौन कौनसे है? के बारे में विस्तार से समझाया गया है | आपको यह जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी |

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